
देहरादून। उत्तराखंड विधानसभा में समान नागरिक संहिता विधेयक पेश किया गया। यह विधेयक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी द्वारा पेश किया गया। जय श्रीराम व भारत माता की जयघोष के बीच मुख्यमंत्री सीएम पुष्कर सिंह धामी ने विधानसभा में समान नागरिक संहिता विधेयक पेश किया। विधेयक के पेश होने के बाद भाजपा विधायकों ने सदन में जमकर नारेबाजी की और सीएम धामी को बधाई दी। 11.25 मिनट पर स्पीकर ऋतु खंडूड़ी भूषण ने सदन की कार्यवाही दो बजे तक स्थगित कर दी। भोजनावकाश के बाद यूसीसी विधेयक पर चर्चा जारी है। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि इस विधेयक को लेकर सरकार जल्दबाजी कर रही है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक को प्रवर समिति को सौंपा जाए। संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने समान नागरिक संहिता की खूबियां गिनाई।
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समान नागरिक संहिता में जाति, धर्म व पंथ के रीति-रिवाजों से छेड़छाड़ नहीं
देहरादून। समान नागरिक संहिता विधेयक में शादी, तलाक, विरासत और गोद लेने से जुड़े मामलों को ही शामिल किया गया है। इन विषयों, खासतौर पर विवाह प्रक्रिया को लेकर जो प्राविधान बनाए गए हैं उनमें जाति, धर्म अथवा पंथ की परंपराओं और रीति रिवाजों से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। वैवाहिक प्रक्रिया में धार्मिक मान्यताओं पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। धार्मिक रीति-रिवाज जस के तस रहेंगे। ऐसा भी नहीं है कि शादी पंडित या मौलवी नहीं कराएंगे। खान-पान, पूजा-इबादत, वेश-भूषा पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
विधेयक में 26 मार्च वर्ष 2010 के बाद से हर दंपती के लिए तलाक व शादी का पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। ग्राम पंचायत, नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम, महानगर पालिका स्तर पर पंजीकरण का प्रावधान। पंजीकरण न कराने पर अधिकतम 25 हजार रुपये का अर्थदंड का प्रावधान। पंजीकरण नहीं कराने वाले सरकारी सुविधाओं के लाभ से भी वंचित रहेंगे। विवाह के लिए लड़के की न्यूनतम आयु 21 और लड़की की 18 वर्ष तय की गई है। महिलाएं भी पुरुषों के समान कारणों और अधिकारों को तलाक का आधार बना सकती हैं। हलाला और इद्दत जैसी प्रथाओं को समाप्त किया गया है। महिला का दोबारा विवाह करने की किसी भी तरह की शर्तों पर रोक होगी। कोई बिना सहमति के धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति से तलाक लेने व गुजारा भत्ता लेने का अधिकार होगा। एक पति और पत्नी के जीवित होने पर दूसरा विवाह करना पूरी तरह से प्रतिबंधित होगा। पति-पत्नी के तलाक या घरेलू झगड़े के समय पांच वर्ष तक के बच्चे की कस्टडी उसकी माता के पास रहेगी।