उत्तराखंड

हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को विचित्र बताकर किया निलंबित अपीलकर्ता को दी जमानत

नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने तृतीय अपर जिला जज, रुद्रपुर ने हत्या के जुर्म संबंधित एक व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा दिए जाने को विचित्र फैसला बताया। साथ ही उस आदेश को मामले के विचाराधीन रहने तक निलंबित कर दिया है। आरोपी की जमानत मंजूर की है। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने पारित किया है।
याचिकाकर्ता की ओर से उनके अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि, राकेश माली का एक व्यक्ति के साथ 29 जुलाई 2019 को विवाद हुआ था। जिस व्यक्ति के साथ उसका झगड़ा हुआ, उसकी 17 अगस्त 2019 को मौत हो हुई। जिसमें याचिकाकर्ता को हत्या का दोषी ठहराते हुए तृतीय अपर जिला जज, रुद्रपुर ने 28 जुलाई 2023 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद निचली अदालत की दी गई दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को प्रथम दृष्टया ‘विचित्र’ करार देते हुए कहा कि हत्या का कथित हथियार बरामद नहीं हुआ। अभियोजन पक्ष (प्रॉसिक्यूटर) के दस्तावेजों में विरोधाभास है और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि मृतक की मृत्यु घटना के तीन सप्ताह बाद हृदयाघात (हार्ट अटैक) से हुई थी। इसके बावजूद निचली अदालत ने आरोपित को दोषी ठहराया।
हाईकोर्ट ने यह भी पाया कि मुख्य गवाह की जिरह का अवसर आरोपी को नहीं दिया गया, जो निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांतों का उल्लंघन है। इन परिस्थितियों में हाईकोर्ट ने अपील लंबित रहने तक सजा को निलंबित कर दिया और आदेश दिया कि अपीलकर्ता राकेश माली को 20 हजार के निजी मुचलके एवं समान राशि के एक जमानतदार पर तत्काल रिहा किया जाए। मामले को आगे की सुनवाई हेतु नियमानुसार तिथि पर सूचीबद्ध करने का निर्देश भी दिया गया है।
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने अबोध बच्ची के साथ सामूहिक दुराचार के मामले में दोषी की सजा को आंशिक रूप से कम कर दिया है। लेकिन उसके खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों को सही ठहराया है। अदालत ने फैसला सुनाया कि निचली अदालत द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा अत्यधिक थी और इसे 20 साल के कठोर कारावास में बदल दिया। यह मामला 2015 के एक आपराधिक अपील से जुड़ा है, जिसमें कन्हाई बैरागी नाम के 18 साल के युवक को निचली अदालत ने 9 साल की बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार और अपहरण के आरोप में दोषी ठहराया था। अपर जिला जज/विशेष न्यायाधीश पॉक्सो ने आरोपी बैरागी निवासी दिनेशपुर को 22 अगस्त 2015 को धारा 376डी (सामूहिक बलात्कार) के तहत आजीवन कारावास और 50 हजार रुपए का जुर्माना, साथ ही धारा 366 (अपहरण) के तहत 10 साल की कैद और 20 हजार रुपए का जुर्माना लगाया था। निचली अदालत के इस फैसले को आरोपी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
हाईकोर्ट में आरोपी के वकील ने दलील दी कि याचिकाकर्ता को दी गई सजा बहुत कठोर है और इसे कम किया जाना चाहिए। हालांकि, उन्होंने दोषसिद्धि के खिलाफ कोई तर्क नहीं दिया। अदालत ने इस मामले की गहनता से समीक्षा की और अभियोजन पक्ष की पैरवी को सही ठहराया। अदालत ने पीड़िता, उसके चाचा और मां के बयान, साथ ही मेडिकल रिपोर्ट को भी विश्वसनीय पाया। जस्टिस रविंद्र मैठाणी ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हालांकि अपराध जघन्य है, लेकिन आरोपी की उम्र (घटना के समय 18 साल, 10 दिन) और उसके आपराधिक इतिहास की कमी को देखते हुए, आजीवन कारावास की सजा अत्यधिक है। इसलिए, अदालत ने धारा 376 डी के तहत दी गई आजीवन कारावास की सजा को घटाकर 20 साल के कठोर कारावास में बदल दिया। धारा 366 अपहरण के तहत 10 साल की कैद और सभी जुर्माने को यथावत रखा गया। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि जुर्माने की राशि पीड़िता को दी जाए। अदालत ने आरोपी की आपराधिक अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया। दोषसिद्धि को बरकरार रखा। लेकिन सजा को संशोधित कर दिया। दोषी को तुरंत हिरासत में लेकर बाकी की सजा काटने के लिए जेल भेजने का आदेश दिया गया है।

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