उत्तराखंड

देश की स्वतंत्रता के साथ आत्मिक जागृति का पावन पर्व भक्ति में आजादी की मुक्तिः रमित

देहरादून। सम्पूर्ण भारतवर्ष ने जहां स्वतंत्रता के 79 गौरवशाली वर्ष का उत्सव मनाया, वहीं संत निरंकारी मिशन ने मुक्ति पर्व को आत्मिक स्वतंत्रता के रूप में श्रद्धा और समर्पण से भव्यतापूर्वक आयोजित किया। यह पर्व केवल एक स्मृति नहीं, बल्कि आत्मिक चेतना के जागरण और जीवन के परम उद्देश्य का प्रतीक है। मुक्ति पर्व समागम का आयोजन निरंकारी राजपिता रमित जी की पावन अध्यक्षता में दिल्ली स्थित निरंकारी ग्राउंड नंण् 8ए बुराड़ी रोड पर किया गया, जिसमें दिल्ली एवं एनसीआर के क्षेत्रों से हज़ारों श्रद्धालु और भक्तों ने सम्मिलित होकर सतगुरु के आदेशानुसार उन महान संत विभूतियों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए जिन्होंने मुक्तिमार्ग को प्रशस्त करने हेतु अपना सम्पूर्ण जीवन ही मानवता की सेवा में अर्पित कर दिया।
इसी श्रृंखला में देहरादून बाईपास निरंकारी सत्संग भवन में जोनल इंचार्ज हरभजन सिंह ने मुक्ति पर्व के अवसर पर निरंकारी मिशन के पुरातन महान विभूतियों के योगदान की सराहना करते हुए उनके जीवन से प्रेरणा लेने की सभी संतो को आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त विश्वभर में मिशन की सभी शाखाओं में भी मुक्ति पर्व के अवसर पर विशेष सत्संग का आयोजन कर इन दिव्य संतों को नमन किया गया। श्रद्धालुजनों ने शहनशाह बाबा अवतार सिंह जीए जगत माता बुद्धवंती जीए राजमाता कुलवंत कौर जीए माता सविंदर हरदेव जीए भाई साहब प्रधान लाभ सिंह जी एवं अन्य अनेक समर्पित भक्तों को हृदय से स्मरण कर उनके जीवन से प्रेरणा प्राप्त की।
इस पर्व की शुरुआत 15 अगस्त 1964 को जगत माता बुद्धवंती जी की स्मृति में हुई जिसे तब जगत माता दिवसष् के रूप में आयोजित किया गया। 17 सितम्बर 1969 में बाबा अवतार सिंह जी के ब्रह्मलीन होने पर यह दिवस सन् 1970 से जगत माता.शहनशाह दिवसष् कहलाने लगा। 1979 में प्रथम प्रधान भाई साहब लाभ सिंह जी के ब्रह्मलीन होने पर बाबा गुरबचन सिंह जी ने इसे ष्मुक्ति पर्वष् नाम दिया। 2018 से माता सविंदर हरदेव जी को भी इस दिन श्रद्धा सुमन अर्पित किये जाते है। मुक्ति पर्व की मूल भावना यही है कि जैसे भौतिक स्वतंत्रता हमें राष्ट्र की उन्नति का मार्ग देती हैए वैसे ही आत्मिक स्वतंत्रता यानि जन्म.मरण के चक्र से मुक्ति मानव जीवन की परम उपलब्धि है। यह मुक्ति केवल ब्रह्मज्ञान की दिव्य ज्योति से ही संभव हैए जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ती हैए और इस जीवन के वास्तविक उद्देश्य का बोध कराती है।

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