उत्तराखंड

आधुनिकीकरण समय कि मांग है, मगर प्रकृति को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ रहाः खुराना

देहरादून। आधुनिकीकरण समय कि मांग है, मगर प्रकृति को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है, जिसके कारण नदियों का अस्तित्व समाप्त हो रहा है। युवा चाहें तो अपने प्रयासों से अस्तित्व के लिए जूझ रही नदियों को पुनर्जीवित कर सकते हैं और यही हर युवा का लक्ष्य भी होना चाहिए। देवभूमि उत्तराखंड यूनिवर्सिटी में आयोजित समारोह में मग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित जल पुरुष डॉ. राजेंद्र सिंह ने ये बात कही।
मांडूवाला स्थित देवभूमि उत्तराखंड यूनिवर्सिटी में इन दिनों विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है। इसी उपलक्ष पर “हिमालय की पुकारः नदियों को पुनर्जीवित करना युवाओं का लक्ष्य और प्रकृति संरक्षण” विषय पर विचार मंथन किया गया। इस मौके पर मग्सेसे पुरस्कार विजेता जल पुरुष डॉ. राजेंद्र सिंह ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार व्यक्त किय। उन्होंने कहा कि मानव सभ्यता के विकास के लिए नदियों कि उपयोगिता किसी से छुपी नहीं है। बावजूद इसके धीरे-धीरे इनका अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है।
सड़क, बिजली, भवन निर्माण के लिये पेड़ काटे जा रहे हैं, नदियों को बांधा जा रहा, उनका रुख मोड़ा जा रहा है, जो अनुचित है। इसका बुरा असर हमारी आगे आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पडेगा। इसलिए हर युवा का लक्ष्य होना चाहिए कि वो नदियों के अस्तित्व को बचाए रखने का ठोस प्रयास करें। वहीं हिमालय नदी घाटी परिषद की अध्यक्ष डॉ. इंदिरा खुराना ने प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, पेयजल, स्वच्छता एवं गांवों में खाद्य सुरक्षा और आजीविका पर अपने विचार व्यक्त किये। इसके अलावा पर्यावरण सामाजिक शोध संस्थान के निदेशक संजय राणा ने कहा कि समाज को एक बेहतर दिशा देने के लिए पर्यावरण अप्रत्यक्ष रूप से भूमिका
निभाता है, और आज पर्यावरण, विकास की भेंट चढ़ रहा है। प्रयास ऐसे होने चाहिए कि विकास तो हो, मगर पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए। विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफ़ेसर डॉ. प्रीति कोठियाल ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण को देखते हुए देवभूमि उत्तराखंड यूनिवर्सिटी में छात्रों की एक इको टास्क फ़ोर्स का गठन किया गया है, जोकि पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दे पर लोगों को जागरूक करने का प्रयास करेगी। कार्यक्रम का आयोजन विवि के कुलाधिपति संजय बंसल और उपकुलाधिपति अमन बंसल की देखरेख में संपन्न हुआ। इस मौके पर विवि के उपकुलपति डॉ. आरके त्रिपाठी, पर्यावरणविद रमेश शर्मा, कृषि विभाग के डीन डॉ. गणेश पांडे, एसोसिएट डीन डॉ. मनीषा फोगाट आदि मौजूद रहे।

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