उत्तराखंड

एक कार्रवाई वो थी, एक कार्रवाई ये है …

देहरादून। भर्ती परीक्षा का पेपर एक बार फिर लीक हो गया। बेरोजगार युवा गुस्से में हैं। घर बार छोड़कर परेड ग्राउण्ड को उन्होंने अपना डेरा बना रखा है। उनका आक्रोश पहले के बनिस्बत ज्यादा है। किसी को समझ नहीं आ रहा कि नकल विरोधी कठोर कानून लागू होने के बाद भी ऐसा कैसे हो गया। सरकारी सिस्टम सवालों के घेरे में है। युवाओं का गुस्सा जायज भी है। लेकिन, इस पूरे प्रकरण के दो पहलू हैं। एक संवेदनशील और दूसरा वास्तविक। संवेदनशील पहलू यह है कि सरकारी नौकरी पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे युवाओं के सपने टूटे हैं। उनके परिश्रम और संघर्ष को पलीता लगा है। लेकिन दूसरा वास्तविक पहलू यह भी है कि कानून कोई जादू की छड़ी नहीं है जो तत्काल अपराधियों का समूल नाश कर देगा। कानून तो केवल एक माध्यम है जिसके जरिये अपराध की दर को कम किया जा सकता है ताकि भविष्य में उस पर प्रभावी अंकुश लगाया जा सके। असल सवाल यह है कि सरकार की मंशा नकल माफिया पर नकेल कसने की है या नहीं ? इस सवाल का जवाब तलाशना इसलिए जरूरी है क्योंकि हमारे प्रदेश में अब तक जितने भी भर्ती घोटाले सामने आए हैं उनमें सफेदपोश, नौकरशाह, कोचिंग संस्थानों और नकल माफिया की मिलीभगत उजागर हुई है। ऐसे में यह जानना दिलचस्प होगा कि किस मुख्यमंत्री के कार्यकाल में कौन से भर्ती घोटाले हुए और उस वक्त इस नेक्सस को तोड़ने की कितनी ईमानदार कोशिशें हुईं। आईये ! एक नजर डालते हैं उत्तराखण्ड में अब तक हुए चर्चित भर्ती घोटालों और उनके उजागर होने पर किसी सरकार ने क्या-क्या कार्रवाई की।

यह एक कटु सत्य है कि पेपर लीक होना हमारे देश में एक राष्ट्रीय समस्या है। पिछले दो दशक में देशभर में पेपर लीक व भर्ती परीक्षा से जुड़े 70 से ज्यादा बड़ी घोटाले चर्चाओं में रहे हैं। आये दिन किसी न किसी राज्य में भर्ती परीक्षाओं के पेपर लीक होने की खबर सुनाई देती है। सिस्टम में गहरी जड़ें जमा चुका नकल माफिया न सिर्फ योग्य छात्रों का भविष्य बर्बाद कर रहा है बल्कि उसकी धमक से भर्ती प्रक्रिया की निष्पक्षता भी भंग हो गई है। पैसे में नौकरी का सौदा होता देख मेहनतकश युवाओं में निराशा और अविश्वास का माहौल बनता जा रहा है। पिछले 20 सालों में राजस्थान का टीचर भर्ती, बिहार का कॉस्टेबल व संविदा भर्ती, पश्चिमी बंगाल का शिक्षक भर्ती, मध्य प्रदेश का नर्सेज भर्ती, गुजरात का जूनियर क्लर्क भर्ती और यूपी का टीईटी पेपर लीक घोटाला सुर्खियों में रहा है। इसके अलावा झारखण्ड, तेलंगना, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश में भी तमाम भर्ती परीक्षाओं पर भी नकल माफिया की काली छाया देखने को मिली है। दुर्भाग्य से माफिया से प्रभावित इन राज्यों की सूची में हमारे प्रदेश उत्तराखण्ड का नाम भी शामिल है।

वर्ष 2000 में पृथक राज्य बनने के दो साल बाद हमारे प्रदेश की पहली निर्वाचित सरकार के कार्यकाल में ही भर्ती घोटाले की शुरुआत हो चुकी थी। वर्ष 2002 में पौड़ी में हुई पटवारी भर्ती परीक्षा में जिन अभ्यर्थियों ने आवेदन पत्र ही नहीं भरे थे, उनका भी चयन कर लिया गया। इस घपले में तत्कालीन जिलाधिकारी एसके लांबा की भूमिका पर सवाल उठे तो मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया था। आईएएस अफसर पर हुई इस कार्रवाई से पूरे देश की आईएएस लॉबी में हलचल मच गई। लॉबी के दबाव में आए बगैर सरकार ने बाद में उन्हें बर्खास्त कर दिया था। देशभर में किसी भर्ती घोटाले में यह आईएएस अफसर की पहली व अंतिम बर्खास्तगी है। लेकिन जांच में यह भी सामने आया था कि राजनेताओं की मिलीभगत भी इसमें थी लेकिन उन पर कोई एक्शन नहीं हुआ।

वर्ष 2002 में ही दरोगा भर्ती में भी धांधली सामने आई। 253 पदों के लिए दरोगा की भर्ती आइआइटी रूड़की ने कराई थी। इसमें 2598 युवाओं ने रिर्टन क्वालीफाइड किया और 1493 इंटरव्यू के लिए गए थे। इसके बाद 253 की मेरिट बनी। मेरिट बनते ही गड़बड़ी शुरू हो गई। 2002 में रिजल्ट जारी हुआ। इसमें कई युवा अच्छे प्रदर्शन के बाद बाहर हो गए और नाराज होकर हाईकोर्ट पहुंच गए थे। तब शासन ने हाईकोर्ट से सीबीआई जांच कराने की अनुमति ली थी। सीबीआई ने जांच में पूर्व डीजीपी प्रेम दत्त रतूड़ी, पूर्व एडीजी राकेश मित्तल की लापरवाही सामने आई थी। खुलासा हुआ कि सात युवाओं को नियम ताक में रखकर भर्ती किया गया था। फिर उन्हें बाहर कर रनरअप युवाओं को मौका मिला। इस मामले में अधिकारियों के विरूद्ध प्राथमिकी के बाद चार्जशीट दाखिल हुई लेकिन कोई बड़ा एक्शन नहीं हुआ।

वर्ष 2015-16 में कांग्रेस की तत्कालीन हरीश रावत सरकार के कार्यकाल में दरोगा के 339 पदों पर गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्याल पंतनगर ने सीधी भर्ती परीक्षा करवाई थी। उस वक्त भर्ती प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी की आशंकाएं जताई गईं लेकिन कार्रवाई के नाम पर शून्य रहा। इसके छह साल बाद 2022 में मामला तब उजागर हुआ जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर अन्य मामलों में हुई कार्रवाई में एक आरोपी केन्द्रपाल ने उगला कि वर्ष 2015-16 की दरोगा भर्ती में भी घोटाला हुआ था। फिर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले की जांच विजिलेंस से कराने की अनुमति दी थी और सख्त कार्रवाई (जिसका जिक्र आगे है) अमल में लाई गई।

भाजपा की त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार भी नकल माफिया के प्रभाव से अछूती नहीं रही। उत्तराखण्ड अधीनस्थ चयन सेवा आयोग ने 16 फरवरी 2020 को फारेस्ट गार्ड भर्ती परीक्षा आयोजित की थी जिसमें 97 हजार परीक्षार्थियों ने भाग लिया था। यह भर्ती परीक्षा नकल और पेपर लीक के कारण स्थगित कर दी गई। परीक्षा में पेपर लीक और ब्लूटूथ के माध्यम से नकल की गई। फिर 14 फरवरी 2021 को दुबारा परीक्षा हुई। पुलिस ने जांच की तो पेपर लीक व नकल कराने में रुड़की के एक कोचिंग सेंटर संचालकर मुकेश सैनी का नाम सामने आया। परीक्षार्थियों से लाखों रुपये लेकर ब्लूटूथ के जरिए नकल कराने की पुष्टि हुई। इस मामले में अभी तक रुड़की में आठ और पौड़ी में तीन लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। इसके अलावा, उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा दिनांक 6 मार्च 2016 को ग्राम पंचायत विकास अधिकारी चयन परीक्षा करवाई गई, जिसमें भी जमकर धंधली हुई। इन मामले में 2022 में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया गया था, जिसने सेवानिवृत्त भारतीय वन सेवा अधिकारी आरबीएस रावत सहित कई अधिकारियों को गिरफ्तार किया था। आरबीएस रावत इस परीक्षा के वक्त उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग परीक्षा के अध्यक्ष थे।

उत्तराखण्ड में भर्ती परीक्षाओं में धांधली का सबसे बड़ा जिन्न उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग द्वारा जुलाई 2021 से दिसंबर 2021 के बीच आयोजित तीनों भर्ती परीक्षाओं में नकल के रूप में सामने आया। ये वो दौर था जब भाजपा हाईकमान ने पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी थी। इसे एक तरह से सत्ता हस्तांतरण का संक्रमणकाल भी माना जा सकता है। ठीक इसी वक्त आयोग ने 13 सरकारी विभागों के लिए समूह ग स्नातक स्तर के 916 पदों, सचिवालय रक्षक के 33 पद और वन दरोगा के 316 पदों के लिए परीक्षा कराई थी, जिनमें तकरीबन 2.5 लाख अभ्यर्थी शामिल हुए थे। तीनों परीक्षाओं के परिणाम भी जारी हुए और सफल अभ्यर्थियों के शैक्षणिक दस्तावेजों की जांच कर उन्हें नियुक्तियां भी मिल गईं, लेकिन बाद में पता चला कि इन परीक्षाओं में पेपर लीक व नकल कराई गई थी।

इन तीन परीक्षाओं के आयोजित होने के 6 माह बाद 22 जुलाई 2022 को उत्तराखंड बेरोजगार संघ ने मुखर होकर भर्ती परीक्षा में धांधली की शिकायत मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से की। इस पर मुख्यमंत्री ने तत्कालीन पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार को भर्ती की जांच कराने का आदेश दिया। उनके आदेश पर रायपुर थाने में मुकदमा दर्ज किया गया और प्रकरण की विवेचना एसटीएफ को सौंपी गई। तफ्तीश में निकला कि नकल माफिया ने मिलीभगत कर पेपर लीक किया है। इस मामले में एक चौंकाने वाली बात सामने आई कि सत्ताधारी दल भाजपा से जुड़ा उत्तरकाशी जिले का जिला पंचायत सदस्य हाकम सिंह भी इस नकल माफिया गिरोह की अहम कड़ियों में से एक है। धामी ने डीजीपी को आदेश दिए कि कोई आरोपी कितना भी रसूखदार क्यों न हो या किसी भी राजनैतिक दल से जुड़ा हो उसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए। सीएम की सख्ती के बाद जेल की सलाखों के पीछे पहुंचे हाकम समेत अधिकांश आरोपियों पर गैंगेस्टर और रासुका के तहत कार्रवाई की गई। निष्पक्ष तरीके से हुई इस जांच के बाद भेद खुलते चलते गए और न केवल वर्ष-2021, बल्कि वर्ष 2016 में हुई दरोगा भर्ती और ग्राम पंचायत विकास अधिकारी चयन परीक्षाओं की स्याह हकीकत भी सामने आ गई।

सिलसिलेवार जांच आगे बढ़ी तो भर्ती परीक्षाओं में धांधली में माफिया के साथ राजनेताओं और अफसरों के गठजोड़ की परतें भी खुलकर सामने आती चली गईं। अन्तर्राज्यीय नकल माफिया सादिक मूसा, हाकम सिंह, कर्मचन्दपाल, अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के पूर्व अध्यक्ष आरबीएस रावत, पूर्व सचिव मनोहर कन्याल और पूर्व परीक्षा नियंत्रक आरएस पोखरिया समेत लगभग 100 आरोपी सलाखों के पीछे भेज दिए गए। आरोपितों में उत्तराखण्ड व उत्तर प्रदेश के एक दर्जन सरकारी अधिकारी-कर्मचारी भी शामिल थे। नकल माफिया पर आगे प्रभावी कार्रवाई हो सके इसके लिए धामी सरकार ने सख्त नकल विरोधी कानून भी बनाया जिसे मार्च-2023 में लागू किया गया। यह अलग बात है कि इन सभी आरोपियों को नए नकल विरोधी कानून के लागू होने से पहले गिरफ्तार किया जा चुका था जिस वजह से उन पर नए कानून के मुताबिक सख्त कार्रवाई नहीं हो सकी। लेकिन अब हाल के नए प्रकरण में फिर से गिरफ्तार हुए नकल माफिया हाकम सिंह व अन्य आरोपियों पर कठोर नकल विरोधी कानून के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।

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