उत्तराखंड

पिरूल एकत्रीकरण पर बढ़ा मुआवजा, रोजगार के नए अवसर

देहरादून। उत्तराखंड में वनाग्नि नियंत्रण को अधिक प्रभावी बनाने के लिए वन विभाग ने इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर (आईसीसीसी) की स्थापना की है और फोरेस्ट फायर उत्तराखण्ड मोबाइल ऐप विकसित किया है। प्रमुख वन संरक्षक (हॉफ) डॉ. धनंजय मोहन ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में जानकारी दी कि इस ऐप का उपयोग न केवल विभागीय कर्मियों, बल्कि ग्राम प्रधानों, वन पंचायतों और स्वयंसेवी संगठनों ने किया जाएगा, जिससे वनाग्नि की घटनाओं पर त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित होगी।
इसके अलावा, वन्यजीव संघर्ष, अवैध कटान, अतिक्रमण और शिकार जैसी घटनाओं की शिकायतों के त्वरित समाधान के लिए इंटीग्रेटेड हेल्पलाइन नंबर 1926 भी सक्रिय किया गया है। वनाग्नि नियंत्रण को प्रभावी बनाने के लिए शीतलाखेत मॉडल को पूरे राज्य में लागू किया जा रहा है। अब तक 15 वन प्रभागों की 20 टीमों को एक्सपोजर विज़िट कराई जा चुकी हैं और विभिन्न वन प्रभागों की टीमों को विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
सरकार ने वनाग्नि नियंत्रण में सहायता के लिए पिरूल (सूखी पत्तियां) एकत्रीकरण की दर 3 रुपये से बढ़ाकर 10 रुपये प्रति किलोग्राम कर दी है। इससे न केवल जंगलों में आग लगने की घटनाओं में कमी आएगी, बल्कि स्थानीय लोगों को आर्थिक लाभ भी मिलेगा। इसके साथ ही, वन विभाग ने पैलेट्स व ब्रिकेट्स यूनिटों को बढ़ावा देने और नई यूनिटों की स्थापना की योजना बनाई है, जिससे स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
संवेदनशील वन क्षेत्रों में मौसम पूर्वानुमान केंद्रों की स्थापना के लिए मौसम विभाग के साथ एमओयू किया गया है। इससे मौसम के बदलाव पर निगरानी रखते हुए वनाग्नि की घटनाओं को रोका जा सकेगा। उत्तराखंड सरकार और वन विभाग की इन पहलों से वन संरक्षण और पर्यावरण संतुलन को मजबूत करने में अहम योगदान मिलेगा।

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