ईश्वर पर विश्वास असम्भव को भी सम्भव कर देताः साध्वी ममता भारती

देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की शाखा, 70 इंदिरा गांधी मार्ग, (सत्यशील गैस गोदाम के सामने) निरंजनपुर के द्वारा आज आश्रम हॉल में दिव्य सत्संग-प्रवचनों एवं मधुर भजन-संर्कीतन के कार्यक्रम का विशाल पैमाने पर आयोजन किया गया। संस्थान के संस्थापक एवं संचालक ‘‘सद्गुरू आशुतोष महाराज’’ की अनुकम्पा से ‘साध्वी विदुषी ममता भारती’ ने मनुष्य के भीतर व्याप्त भय पर आज के विचारों को केंद्रित करते हुए बताया कि संसार में विचरण कर रहे मनुष्यों के भीतर व्याप्त भय एक एैसे अभिशाप की तरह है, जो मानव विकास के समस्त मार्गों को अवरूद्ध कर दिया करता है। ‘अगर’ एक एैसा शब्द है जो जहां लग जाता है भारी असुरक्षा को ही जन्म दिया करता है। किन्तु-परन्तु, लेकिन, मगर, यदि, अदरवाईज, यह सब भीतर के डर को ही रेखांकित किया करते हैं। इतिहास में अमर हुए कई एैसे पात्र हैं जिन्होंने अनगिनत खोजों, नए अविष्कारों तथा बहुत से रहस्योद्घाटनों से जगत को काफी कुछ नया प्रदान किया परन्तु ये सभी लोग कहीं न कहीं अपने भीतर विद्यमान डर (भय) से सदा ग्रसित ही रहे।
विडम्बना की ही तो बात है कि इन महान कहे जाने वाले लोगों, जिनके नाम पर अनेक तरह के पुरस्कारों, यहां तक की ‘‘नोबल प्राईज’’ भी दिए गए, इन लोगों ने डर के साए में ही जीवन गुजारा। विश्व विजेता सिकन्दर हो या क्रूर हिटलर, मुसोलिनी हो चाहे नेपोलियन बोनापार्ट, ये सब बाहरी तौर पर तो बड़े बहादुर और सर्व शक्तिमान थे लेकिन छोटे-छोटे डर इन्हें भीगी बिल्ली बना दिया करते थे। नेपोलियन कीड़े तक से डर जाता था, मुसोलिनी कॉक्रोच से भय खाता था, हिटलर कितना भी सख्तजान रहा हो लेकिन बिल्ली देखकर वह थर-थर कांपा करता था। इसी श्रृंखला में विंस्टन चर्चिल और न्यूटन के नाम भी उल्लेखनीय हैं। विंस्टन चर्चिल प्रभाव पूर्ण तरीके से अपनी बात नहीं रख पाते थे, उन्हें घबराहट घेर लिया करती थी और न्यूटन मंच पर स्पीच देने में खुद को असमर्थ पाते थे, वे अपनी कंपकंपाती उंगलियों तथा शरीर को कम रोशिनी से छुपाने का प्रयास किया करते थे। साध्वी जी ने बताया कि ‘रविन्द्र नाथ टैगोर’ कहा करते थे, क्या कोई एैसा तरीका ईजाद किया जा सकता है जिससे मनुष्य इस भय पर काबू पा सके? साध्वी जी ने बताया कि मात्र ईश्वर ही मनुष्य के समस्त भयों की समाप्ति का आधार हैं। परमात्मा के साथ गहनता पूर्वक जुड़ जाने के उपरान्त ही मनुष्य पूर्णतः निर्भय हो पाता है। परमात्मा के साथ वास्तविक जुड़ाव के लिए उसे एक एैसे संत-सद्गुरू की शरणागत् होना होगा जो स्वयं परमात्मा के साथ ‘इकमिक’ हैं तथा अपने शरणागत् को भी पावन ‘ब्रह्म्ज्ञान’ प्रदान कर उसके साथ जोड़ देने की क्षमता रखते हों, यही एक मात्र ‘सार्वभौमिक’ उपाय है जो मानव मन से इस भय का सदा के लिए उन्मूलन कर सकता है।
इस रविवारीय साप्ताहिक सत्संग कार्यक्रम का शुभारम्भ मन भावन भजनों की प्रस्तुति देते हुए किया गया। संस्थान के संगीतज्ञों ने अनेक भजनों के गायन से भक्तजनों को भाव-विभोर कर दिया। 1- भगवान सदा साथ हैं अपने, इक वो ही सच्चा साथी है……, 2- जिन्दगी का सफर करने वाले, अपने मन का दिया तो जला ले…….. 3- कहां रहते हो प्रभु, कहां रहते हो हमें तुम बतलाओ, तुम्हें ढूंढ़ूं कहां- तुम्हे खोजूं कहां…….. तथा 4 तेरे सोणे दर नूं छड सत्गुरू साडा होर ठिकाणा नईं, ना करीं चरणां कोलों दूर तेरा दर छडके जाणां नईं……. इत्यादि भजनों से समां बांधा गया।
भजनों की सारगर्भित व्याख्या करते हुए मंच संचालन साध्वी विदुषी जाह्नवी भारती जी के द्वारा किया गया। भारती जी ने बताया कि एकमात्र परमात्मा की हैं जो हर पल-हर क्षण हमारे अंग-संग रहा करते है। परमात्मा अर्थात वह परम आत्मा अपने जीव रूपी आत्मा के स्वामी हैं, वे अंशी हैं तथा जीव उनका अंश है अतः वह अंशी ही, वह सूक्ष्म सत्ता ही सदैव जीव की रक्षा करने के लिए उसके साथ रहा करता है। वह अपने अंशी को सदैव अपनी दिव्य दृष्टि में रखते हैं और कभी भी उसे बिसारते नहीं हैं। इस जीवन के बाद भी अगली यात्रा में परमात्मा का साथ जीव को प्राप्त हुआ करता है। प्रसाद वितरण करके साप्ताहिक कार्यक्रम को विराम दिया गया।